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महाराष्ट्र में तेजी से कोरोना की बढ़ती संख्या के रोकथाम के लिए लॉकडाउन लगाने को लेकर शिवसेना के मुखपत्र सामना के एडोटोरियल पेज में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेन्द्र फडणवीस पर सवाल करते हुए लिखा कि इस महामारी बीमारी की शृंखला तोड़ना है तो लॉकडाउन एक ही पर्याप्त उपाए है, लेकिन अगर इसके अलावा कोई और विकल्प है तो फडणवीस बताएं. पढिए सामना में अपने पेज में क्या-क्या लिखा है.

कोरोना संक्रमण की शृंखला को तोड़ना है तो लॉकडाउन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. अब इसके अलावा अन्य कोई विकल्प होगा तो श्री फडणवीस बताएं. अंतत: देश मोदी के नाम पर चल रहा है और हर वैक्सीन से लॉकडाउन तक ‘मोदीनामा’ का ही उत्सव शुरू है। ऐसे में राज्यों को मदद करके उत्सव को अधिक तेजोमय करना केंद्र का ही कर्तव्य नहीं बनता है क्या? फिलहाल लोगों का जान गंवाने का जो ‘अनर्थचक्र’ जारी है, उसे रोकना है तो सख्त लॉकडाउन और पाबंदियां अपरिहार्य है, ऐसा मुख्यमंत्री का कहना है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में उपस्थित थे. श्री फडणवीस और उनकी पार्टी की लॉकडाउन के संदर्भ में अलग राय है. लॉकडाउन बिल्कुल नहीं, ऐसा हुआ तो लोगों का आक्रोश भड़क उठेगा. फडणवीस के इस दावे में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है, ऐसा नहीं है.

महाराष्ट्र में सख्त लॉकडाउन लगाना ही पड़ेगा, ऐसा संकेत मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने दिया है. विपक्ष को लॉकडाउन के कारण लोगों का अर्थचक्र बिगड़ जाएगा ऐसा डर लगना स्वाभाविक है, परंतु फिलहाल लोगों का जान गंवाने का जो ‘अनर्थचक्र’ जारी है, उसे रोकना है तो सख्त लॉकडाउन और पाबंदियां अपरिहार्य है, ऐसा मुख्यमंत्री का कहना है. विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में उपस्थित थे. श्री फडणवीस और उनकी पार्टी की लॉकडाउन के संदर्भ में अलग राय है. लॉकडाउन बिल्कुल नहीं, ऐसा हुआ तो लोगों का आक्रोश भड़क उठेगा. फडणवीस के इस दावे में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है, ऐसा नहीं है. लेकिन कोरोना संक्रमण की शृंखला को तोड़ना है तो लॉकडाउन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है. अब इसके अलावा अन्य कोई विकल्प होगा तो श्री फडणवीस बताएं। नोटबंदी, लॉकडाउन आदि विषयों की पहचान प्रधानमंत्री मोदी ने देश को कराई. भ्रष्टाचार की शृंखला टूटे, उसके लिए नोटबंदी व कोरोना संक्रमण की शृंखला तोड़ी जाए इस मंशा से मोदी ने एक साल पहले लॉकडाउन की घोषणा की थी. तब भाजपा कार्यकर्ताओं ने उस निर्णय का थाली बजाकर स्वागत किया. आज कोरोना की स्थिति पहले से ज्यादा गंभीर हो गई है, इसका भान महाराष्ट्र के विपक्ष ने रखा तो जनता पर उपकार होगा. महाराष्ट्र में शनिवार को ५९,४११ नए कोरोना मरीज मिले. ३०९ मरीजों की मौत हुई. मुंबई, ठाणे, पुणे, नासिक जैसी जगहें हॉट-स्पॉट बन गई. देश में कल का आंकड़ा डेढ़ लाख के पार पहुंच गया. यह दृश्य झकझोरनेवाला है इसलिए इस संकट को राजनीति से परे जाकर देखना चाहिए. महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं है, इसकी कीमत महाराष्ट्र की जनता क्यों चुकाए? और पड़ोसी राज्य गुजरात में भाजपा की सत्ता होने के बाद भी वहां कोरोना नियंत्रण में आ गया, ऐसा नहीं है. बल्कि सूरत, अमदाबाद में कोरोना के मरीज सड़क पर, फुटपाथ पर गिरने लगे हैं, इस हद तक हालात अनियंत्रित हो गए हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी इन गंभीर परिस्थितियों में भी लॉकडाउन लगाने को तैयार नहीं हैं क्योंकि व्यापारियों का नुकसान होगा. व्यापारियों की पार्टी सिर्फ व्यापारियों के बारे में सोचती होगी तो कोरोना संकट दिन-प्रतिदिन और उग्र रूप धारण किए बगैर नहीं रहेगा. महाराष्ट्र में आईसीयू, वेंटिलेटर, बेड की कमी हो रही है। सरकारी व निजी अस्पतालों में सिर्फ ११७ बेड शेष हैं.

नांदेड़ जिले के देगलूर-बिलोली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के वर्तमान विधायक रावसाहेब अंतापुरकर की कोरोना के कारण मौत हो गई. शिवसेना की नासिक की नगरसेविका कल्पना पांडे कोरोना के कारण दुनिया छोड़ कर चली गई. सरसंघचालक मोहनराव भागवत कोरोना के कारण अस्पताल में हैं. आम जनता बेहाल है. व्यापार, उद्योग, स्कूल, राजनीति, मंदिर-मस्जिद जहां हैं, वहीं रहेंगे परंतु इंसान ही जीवित नहीं रहा तो क्या करोगे? इस दुनिया में इंसान के जीवन के अलावा और किसी चीज का कोई मोल नहीं है. न ईश्वर, न धर्म, न पैसा, न राजनीति! इसलिए कोरोना संकट पर कोई भी राजनीति न करे, यही बेहतर होगा. महाराष्ट्र में वैक्सीन की कमी है, परंतु पड़ोसी गुजरात में वैक्सीन की बाढ़ है. कोरोना काल में महाराष्ट्र की ही क्या देश की भी अर्थव्यवस्था धराशायी हो गई है, इसे स्वीकार करना ही होगा, परंतु केंद्र द्वारा कुछ राज्यों के साथ किया जानेवाला सौतेला व्यवहार उससे भी गंभीर है. पृथ्वीराज चौहान ने स्पष्ट कहा है कि महाराष्ट्र को पीपीई किट, एन-९५ मास्क और वेंटिलेटर जैसे महत्वूपर्ण चिकित्सकीय उपकरण उपलब्ध कराने में भी सौतेला बर्ताव किया गया. रेमडेसिवीर औषधि की भी कमतरता है ही और उसके लिए जिला स्तर पर कंट्रोल रूम तैयार करना पड़ रहा है. कुछ जगहों पर रेमडेसिवीर की कालाबाजारी जारी है। ऑक्सीजन के अभाव में मरीज बेहाल हो रहे हैं, यह दृश्य अच्छा नहीं है। १५ अप्रैल के बाद राज्य में कोरोना की स्थिति गंभीर होगी, ऐसा मुख्य सचिव सीताराम कुंटे जब कहते हैं, तब उसकी गंभीरता विपक्ष समझ ले तो अच्छा होगा. ‘अर्थचक्र या अनर्थचक्र?’ इस पर तत्काल निर्णय लेना ही चाहिए. कोरोना की पाबंदी लगाते समय जो मेहनतकश हैं, उनकी जरूरतों का ध्यान रखना ही होगा. रोजगार बंद होगा, बड़ा वर्ग एक बार फिर नौकरी गंवाएगा. छोटे दुकानदार, फेरीवालों की जीवन गाड़ी रुक जाएगी और उससे विद्रोह, असंतोष की चिंगारी भड़केगी. अर्थात श्री फडणवीस जो चिंता व्यक्त करते हैं, उसके अनुसार आक्रोश वगैरह होगा, ऐसा नहीं लगता. लोगों को समझाने का काम जैसे सरकारी पक्ष का है, उसी तरह विपक्ष का भी है. लॉकडाउन के कारण बुरी तरह प्रभावित होनेवाले गरीबों को गुजारे के लिए आर्थिक मदद दी जाए और ऐसे जरूरतमंदों के खाते में सीधे रकम जमा की जाए, यह सुझाव अच्छा है और इस कार्य के लिए केंद्र सरकार को महाराष्ट्र सरकार को खुले हाथों से मदद करनी होगी. केंद्र सरकार जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती. भाग नहीं सकेगी. अंतत: देश मोदी के नाम पर चल रहा है और हर वैक्सीन से लॉकडाउन तक ‘मोदीनामा’ का ही उत्सव शुरू है. ऐसे में राज्यों को मदद करके उत्सव को अधिक तेजोमय करना केंद्र का ही कर्तव्य नहीं बनता है क्या? राज्य का विपक्ष दिल्ली जाकर महाराष्ट्र का पक्ष मजबूती से रखे तो राज्यहित का श्रेय उन्हें ही मिलेगा और लॉकडाउन हुआ तो भी जनता को सांत्वना दी जा सकेगी. समय बड़ा कठिन आया है इसलिए यह कहना चाहिए!