भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में सीमा को लेकर गतिरोध जारी है। इस बीच करीब ढाई महीने के बाद दोनों सेनाओं में रविवार को नौवें दौर की बातचीत हुई। 11 घंटे से ज्यादा समय तक चली मीटिंग में भारत ने एक बार फिर साफ कर दिया कि चीन को पूरी तरह से पीछे हटना ही पड़ेगा और यहां पर तनाव कम करने की पूरी जिम्मेदारी चीन पर ही है। कोर कमांडर स्तर की इस मीटिंग का मुख्य उद्देश्य पूर्वी लद्दाख में टकराव वाले सभी स्थानों से सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया पर आगे बढ़ना था। बता दें कि गतिरोध के हल के लिए दोनों देशों के बीच कई दौर की मीटिंग में कोई ठोस नतीजा हाथ नहीं लगा है।
यह बैठक पूर्वी लद्दाख में चीन की ओर मोल्डो सीमावर्ती क्षेत्र में रविवार सुबह 10 बजे शुरू हुई। इसमें भारतीय का नेतृत्व लेह स्थित 14 वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने किया। भारत ने एक बार फिर जोर देकर कहा कि एलएसी पर टकराव के सभी बिंदुओं से सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया दोनों तरफ से एक साथ शुरू होनी चाहिए। कोई भी एकतरफा दृष्टिकोण उसे स्वीकार नहीं है। मीटिंग में भारत की ओर से कहा गया है कि एलएसी पर अप्रैल, 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो।
पूर्वी लद्दाख में पहली बार पिछले साल 5 मई को दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव हुआ था। उसके बाद से भारी ठंड के इस मौसम में पूर्वी लद्दाख में भारत ने सभी अहम बिंदुओं पर 50 हजार से अधिक जवानों को तैनात कर रखा है। ये जवान किसी भी हालात का सामना करने के लिए हर वक्त तैयार हैं। चीन ने भी अपनी तरफ इतने ही सैनिकों की तैनाती की है।
30 अगस्त को भारत ने रेचन ला, रेजांग ला, मुकर्पी और टेबलटॉप जैसे पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर महत्वपूर्ण पहाड़ी ऊंचाइयों पर अपनी पहुंच सुनिश्चित कर ली थी, जो तब तक मानव रहित जगह होती थी। भारत ने ब्लैकटॉप के पास भी कुछ तैनाती की है। चीन द्वारा भड़काऊ सैन्य कदम उठाने की कोशिश के बाद भारत की ओर से यह कदम उठाए गए हैं।