भारत के गणतंत्र दिवस की तैयारियां जोरो पर है लेकिन इस बार का गणतंत्र दिवस हर बार से कुछ अलग होगा क्यूंकि इस बार पूरी दुनिया में कोरोना का केहर है और लोग मौत को लेकर शशंकित है लेकिन उसी बिच दुनिया के वैज्ञानिको ने इस महामारी की काट खोज ली है लेकिन फिर भी हर देश की सरकार इसको लेकर एतिहाद बरत रही है क्यूंकि ये महामारी भीड़ की वजह से बढ़ती है। इसी बीच भारत अपना 72वां गणतंत्र मानाने जा रहा है धीमे ही सही लेकिन पूरी सावधानी से आगे बढ़ रहा है।
आज हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में ये बताने वाले है की भारत ने अपना पहला गणतंत्र दिवस कहा और कैसे मनाया था। आइये जानते है पूरी कहानी –
दिल्ली में 26 जनवरी 1950 पर पहला गणतंत्र दिवस परेड राजपथ पर ना होकर इरविन स्टेडियम आज का जो नेशनल स्टेडियम है उसमे हुआ था। उस समय स्टेडियम के चारो तरफ सुरक्षा दिवार नहीं होने के कारण पीछे पुराना किला साफ दिखाई देता था। साल 1950 से 1954 के बीच दिल्ली में गणतंत्र दिवस का समाहरो कभी इरविन स्टेडियम, लाल किला, रामलीला मैदान में आयोजित हुआ था। आज तक ये सिलसिला बना हुआ है और आज की तारीख में राजपथ पर परेड 8 किलोमीटर की दुरी तय करती है। परेड रायसेना हिल से शुरू होती है और राजपथ इंडिया गेट से होकर लाल किला पर खत्म होती है। इसी दिन जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशण में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुआ था जिसमे कहा गया था की ब्रिटिश सरकार ने 26 जनवरी 1930 तक भारत को उपनिवेश का दर्जा नहीं देता तो भारत को पूर्ण स्वतंत्र घोषित क्र दिया जायेगा। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगा लहराया गया और हर साल 26 जनवरी के दिन पूर्ण स्वराज दिवस मानाने का निर्णय भी लिया गया। यही कारन था की कांग्रेस उस दिन से 1947 में आज़ादी मिलने तक 26 जनवरी को स्वंत्रता दिवस के रूप में मानती रही। साल 1950 में देश के पहले भारतीय गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपाल अचारी ने 26 जनवरी को सुबह भारत को एक संप्रभु लोकतांत्रित गणराज घोषित किया। फिर इसके कुछ देर बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद को भारतीय गणतंत्र के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण कराई। उसके बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति भवन में तोपों की सलामी दी गयी। तोपों की सलामी के ये परंपरा 70 के दशक से कायम रही है और आज भी ये परंपरा जारी है। इसके बाद राष्ट्रपति का कारवां इरविन स्टेडियम की तरफ रवाना हुआ, ये कारवां कनौहट प्लेस और उसके आसपास के इलाको का चक्कर लगाते हुए सलामी मंच पर पंहुचा। तब राजेंद्र प्रसाद ने 35 साल पुराणी विशेष रूप से बग्गी में सवार हुए जिसे 6 ऑस्ट्रेलिआई घोड़ो ने खींचा था आधुनिक गणतंत्र दिवस के पहले राष्ट्रपति ने इरविन स्टेडियम में तिरंगा फिराकर परेड की सलामी ली थी।
उस समय हुई परेड में शसक्त सेना के तीनों बलों ने भाग लिए था। इस परेड में नौ सेना, इंफैंट्री, कवेलिरि, रेजीमेंटि इसके अलावा सेना के सात बैंड भी शामिल हुए थे इतना ही नहीं इस दिन पहली बार राष्ट्रीय अवकाश भी घोषित हुआ था। देशवासियों की अधिक भागीदारी के लिए आगे चल क्र साल 1951 से गणतंत्र दिवस समारोह राजपथ पर होने लगा। 1951 के गणतंत्र दिवस समारोह में पहली बार 4 वीरों को उनके साहस के लिए सर्वोच्च परमवीर चक्र दिए गए थे।
साल 1952 से गणतंत्र दिवस के दो दिन बाद बीटिंग रिट्रीट का कार्यक्रम शुरू हुआ था। इसका वक समाहरो रीगल सिनेमा के सामने मैदान में और दूसरा लाल किले पर हुआ था। सेना बैंड ने पहली बार महात्मा गाँधी के मनपसंद गीत की धुन बजाई तभी से हर साल यही धुन बजती है। साल 1953 में पहली बार गणतंत्र दिवस परेड में लोकनृत्य और आतिशबाजी को भी शामिल किया गया। तब इस अवसर पर रामलीला मैदान में आतिशबाजी हुई थी। साल 1956 में पहली बार 5 सजे धजे हाथी गणतंत्र दिवस परेड में शामिल किये गए थे। साल 1958 से राजधानी की सरकारी इमारतों पर बिजली से रौशनी करने की शुरुआत हुई। साल 1959 में पहली बार गणतंत्र दिवस समाहरो में दर्शको पर वायु सेना के हेलीकॉप्टरों से फूल बरसाए गए। साल 1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में पहली बार इंडिया गेट पर स्थित अमर जवान ज्योति पर सैनिको को श्रद्धांजलि अर्पित की गई तब से ये परंपरा आज तक चली आ रही है।
ऐसे बदलते समय और स्वरुप के साथ आज गणतंत्र दिवस इस रुप में पंहुचा है।