भारतीय सेना ने अब चीन की दुखती नस यानी तिब्बत को लेकर अपनी रणनीति में बदलाव किया है. अब वह वास्तविक नियंत्रण रेखा के पीछे से चल रहे चीनी प्रोपेगंडा को मात देने में भी जुट गई है. इसके लिए सेना ने तिब्बत संस्कृति को हथियार बनाने का फैसला किया है. इसके तहत सेना के अधिकारी जवान, तिब्बत के इतिहास, वहां की संस्कृति भाषा का अध्ययन करेंगे. सैन्य अफसर इसके लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ के तिब्बत की संस्कृति को समझेंगे.
गौरतलब है कि पाकिस्तान की नापाक चालों को लेकर भारतीय सेना के पास अच्छी समझ है. हालांकि चीन को लेकर ऐसा नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह चीनी भाषा उसकी पैंतरेबाजी है. ऐसे में अब इस रणनीति से काम लिया जाएगा. सूत्र के मुताबिक तिब्बत के अध्ययन का प्रस्ताव पहली बार अक्टूबर आर्मी कमांडरों के सम्मेलन में सामने आया था. अब शिमला स्थित आर्मी ट्रेनिंग कमांड ने तिब्बतोलॉजी में पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री देने वाले सात संस्थानों की पहचान की है. वहां आर्मी अफसरों को तिब्बत के बारे में संक्षिप्त अध्ययन के लिए भेजा जाएगा.
दरअसल, चीन के लिए तिब्बत एक दुखती रग है जिसे भारत ने अब तक नहीं छेड़ा है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने 1954 में ही बड़ा मौका खो दिया जब चीन के साथ व्यापार समझौते के दौरान तिब्बत क्षेत्र को चीन का हिस्सा मान लिया. हालांकि अब एक एक्सपर्ट ने कहा, ‘अगर आप चीन के साथ संघर्ष में तिब्बत कार्ड खेलना चाहते हैं तो आपको तिब्बत मामलों की विशेषज्ञता हासिल करनी होगी.’