पांच साल पहले किसने कल्पना की होगी कि ममता बनर्जी को वर्ष 2021 में अपने अस्तित्व के लिए जूझना होगा? पश्चिम बंगाल का यह इतिहास है कि सत्ता में रहने वाली पार्टियां तीन दशकों तक सत्ता में रहती हैं। किसने सोचा होगा कि ममता पर हमला वामपंथियों की ओर से नहीं, बल्कि भाजपा की तरफ से होगा, जो दो दशकों से इस पूर्वी राज्य में पांव जमाने की कोशिश कर रही है? या कि वामपंथी दल और कांग्रेस, जो पांच दशकों से एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं, अपना अस्तित्व बचाने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिलाएंगे? और किसने कल्पना की होगी कि असदुद्दीन ओवैसी की छोटी-सी क्षेत्रीय पार्टी एआईएमआईएम कांग्रेस को मुसलमानों, खासकर युवा मुसलमानों को लुभाने के मामले में मात देगी, जो सोचते हैं कि जब सभी दलों ने उन्हें छोड़ दिया है, तो कम से कम वह तो उनके अधिकारों के लिए बोल रही है।
बिहार के सीमांचल क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटें जीतकर और भाजपा द्वारा उन पर जबर्दस्त निशाना साधने के बावजूद हैदराबाद नगरपालिका के चुनावों में अपनी पकड़ बनाए रखने के साथ अब वह पश्चिम बंगाल की लड़ाई के लिए तैयार है। या इस बारे में किसने सोचा होगा कि भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी शिवसेना परोक्ष रूप से ममता के लिए बल्लेबाजी करेगी, जिसने भाजपा की तरफ जाने वाले हिंदू वोटों की कटौती की उम्मीद में पश्चिम बंगाल में अपने प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है। पश्चिम बंगाल में, जहां तीन महीने बाद चुनाव होने हैं, नए गठजोड़ और जमीनी स्तर पर बदलाव के संकेत मिल रहे हैं। राज्य में बढ़ती हिंसा की घटनाएं भी बताती हैं कि पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ जान-बूझकर गुंडागर्दी कर रही हैं। और इस लड़ाई में कुछ भी हो सकता है। लेकिन एक बात तय है कि मुख्य लड़ाई तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच होने वाली है। वामपंथी दल और कांग्रेस की स्थिति खराब हो सकती है।
पश्चिम बंगाल में 27 से 30 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं, जिस पर तृणमूल, वाम दल, कांग्रेस और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम दावा जताने जा रही हैं। राज्य आज हिंदू-मुस्लिम लाइन पर ध्रुवीकरण के लिए अति संवेदनशील है, जो इन दिनों हो रहा है। उतने ही यकीन के साथ यह भी कहा जा सकता है कि भाजपा राज्य में प्रबल ताकत है और ममता बनर्जी बैकफुट पर हैं। भाजपा, जिसने 2016 के विधानसभा चुनाव में 294 में से मात्र तीन सीटें जीती थीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में 42 में से 18 सीटें जीतने में सफल रही। यानी 125 विधानसभा क्षेत्रों में उसे बढ़त है और उसका वोट शेयर 40 फीसदी है। ममता की तृणमूल ने 22 लोकसभा सीटें जीती और उसे 44 फीसदी वोट मिले। इसलिए लोकप्रिय वोट में चार-फीसदी की बढ़त भाजपा के लिए निर्णायक होना चाहिए।