तमाम विवादों के बीच पूर्व राष्ट्रपति, स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द प्रेसिडेंशियल इयर्स’ प्रकाशित कर दी गई। इस किताब में कांग्रेस और सोनिया गांधी पर टिप्पणी को लेकर उठे विवाद के बाद प्रणब मुखर्जी के बेटे अभिजीत मुखर्जी ने किताब पर तब तक रोक लगाने की मांग की थी जब तक कि वो उसे पढ़ नहीं लेते। मगर इससे ठीक उलट उनकी बहन और प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने किताब पर रोक लगाने की अपने भाई कि मांग को गलत बताया था।

प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि कांग्रेस का अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान नहीं कर पाना 2014 में उसकी हार का एक बड़ा कारण बना और इसी वजह से यूपीए सरकार एक मध्यम स्तर के नेताओं कि सरकार बन कर रह गई थी। मुखर्जी ने ये भी लिखा है कि नरेंद्र मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में संसद को सुचारू रूप से चलाने में विफल रहे और इसकी वजह उनका अहंकार रहा। हलाकि प्रणब मुखर्जी ने विपक्ष कि भूमिका पर भी सवाल खड़े किए हैं।

प्रणब मुखर्जी ने अपनी इस किताब में ये खुलासा भी किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा करने से पहले उनके साथ इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं की थी, लेकिन इससे उन्हें हैरानी नहीं हुई क्योंकि ऐसी घोषणा के लिए आकस्मिकता जरूरी है।

2014 चुनावों के नतीजों पर प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि नतीजों से इस बात की राहत मिली कि निर्णायक जनादेश आया, लेकिन किसी समय मेरी अपनी पार्टी रही कांग्रेस के प्रदर्शन से निराशा हुई। उन्होंने आगे लिखा है कि यह यकीन कर पाना मुश्किल था कि कांग्रेस सिर्फ 44 सीट जीत सकी। प्रणब मुखर्जी ने 2014 की हार के लिए कई कारणों का जिक्र किया है। उन्होंने लिखा है कि मुझे लगता है कि पार्टी अपने करिश्माई नेतृत्व के खत्म होने की पहचान करने में विफल रही। पंडित नेहरू जैसे कद्दावर नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि भारत अपने अस्तित्व को कायम रखे और एक मजबूत एवं स्थिर राष्ट्र के तौर पर विकसित हो। दुखद है कि अब ऐसे अद्भुत नेता नहीं हैं, जिससे यह व्यवस्था औसत लोगों की सरकार बन गयी।

किताब में उन्होंने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपने संबंधों का भी उल्लेख किया है। हालांकि, मुखर्जी ने इस किताब में नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान संसद को सुचारू से चलाने में विफलता को लेकर राजग सरकार की आलोचना की है। उन्होंने लिखा है कि मैं सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच कटुतापूर्ण बहस के लिए सरकार के अहंकार और स्थिति को संभालने में उसकी अकुशलता को जिम्मेदार मानता हूं। परंतु विपक्ष भी जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। उसने भी गैरजिम्मेदाराना व्यवहार किया।

मुखर्जी के मुताबिक, सिर्फ प्रधानमंत्री के संसद में उपस्थित रहने भर से इस संस्था के कामकाज में बहुत बड़ा फर्क पड़ता है। इस बारे में प्रणब मुखर्जी ने किताब में कहा है कि चाहे जवाहलाल नेहरू हों, या फिर इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह हों, ये सभी संसद सत्र के दौरान सदन में मौजूद रहा करते थे। प्रधानमंत्री मोदी को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए और ऐसा नेतृत्व देना चाहिए जो दिखे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने ये भी लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विरोधी पक्ष की आवाज भी सुननी चाहिए और विपक्ष को समझाने तथा देश को तमाम मुद्दों कि जानकारी देने के लिए संसद में अक्सर बोलना चाहिए।

प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि कई नेताओं ने उनसे कहा था कि अगर 2004 में वो प्रधानमंत्री बने होते तो 2014 में इतनी करारी हार नहीँ मिलती। प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा है कि कि उनके राष्ट्रपति बनने के बाद कांग्रेस ने दिशा खो दी थी और सोनिया गांधी सही फैसले नहीं कर पा रही थी। प्रणब दा ने किताब में ये भी लिखा है कि मनमोहन सिंह का ज्यादा वक्त अपनी सरकार बचाने में गया जिसका बुरा असर सरकार के कामकाज पर अड़ा, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी ने अपना पहला कार्यकाल निरंकुश तरीके से चलाया और देखना दिलचस्प होगा कि वो अपने दूसरे कार्यकाल सीख ले कर अपना तरीका बदलेंगे या नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *