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तेजस्वी यादव पहली बार प्रतिपक्ष के नेता के रौल में परफेक्ट नजर आए. साल 21-22 के बजट पर जिस तरीके से उन्होंने सरकार को आकड़ों के जाल में घेरने की कोशिश की उससे लगा कि अब उनमें परिवक्वता आ गई है और यह एक अच्छा संदेश है. तेजस्वी गुरुवार को बहस के दौरान एक घंटे से ज्यादा समय तक बजट पर बोलते रहे.

राष्ट्रीय जनता दल के नेता ने अपने आंकड़ों की बदौलत सरकार को पूरी तरह से घेरा, हालांकि बिहार के उपमुख्यमंत्री और वित्त मंत्री तारकिशोर प्रसाद ने उनके आंकड़ों को भ्रामक बताकर निकलने की कोशिश जरूर की, लेकिन उनमें वो आत्मविश्वास नहीं दिख रहा था. तेजस्वी ने भाषण के दौरान अपने माता-पिता यानि लालू-राबड़ी देवी के 15 सालों के शासन की तुलना बीजेपी-जेडीयू के 15 साल के शासनकाल से कर ये साबित करने की कोशिश की कि उनके माता-पिता का राज आज की तुलना में अच्छा था.

तेजस्वी यादव ने कहा कि नीतीश कुमार की सरकार ये ढिंढोरा पिटती है कि उन्होंने बजट के आकार को कहां से कहां पहुंचा दिया. यानि 2005 में जब नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई थी तब बिहार के बजट का आकर 24 हजार करोड़ है जो 2020-21 तक बढ़कर 2 लाख 11 हजार करोड़ हो गया. यानि इस दौरान बजट का आकार करीब 8 गुना बढ़ गया.

तेजस्वी ने कहा कि इसी तरह से जब लालू प्रसाद यादव 1990 में बिहार की सत्ता में आए थे तो उस समय बिहार का बजट 3 हजार करोड़ था जो आरजेडी के शासन खत्म होने तक 24 हजार करोड़ तक पहुंचा यानि इनमें भी 8 गुना की वृद्धि हुई फिर अंतर क्या रहा. तेजस्वी ने ये भी कहा कि 1990 से लेकर अब तक भारत सरकार के बजट आकार में भी 8 गुना वृद्धि ही हुई है.

सदन में बहस के दौरान तेजस्वी यादव ने ये भी आरोप लगाया कि भले ही बिहार का बजट आकार 2 लाख 11 करोड़ था लेकिन सरकार बजट का सिर्फ 33 फीसदी ही खर्च कर पाई है यानि केवल 70 हजार करोड़ रुपये ही सरकार खर्च कर सकी है जबकि 1 लाख 41 हजार करोड़ खर्च नहीं हुए. उन्होंने ये कहा कि उनकी सरकार के दौरान राज्य के आतरिक संसाधनों की हिस्सेदारी 20 फीसदी थी जबकि अब ये घटकर 18 प्रतिशत हो गई है ऐसे में आंतरिक ससांधनों की आमदनी में 2 फीसदी की कमी आई है.

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