लखनऊ हाईकोर्ट बेंच ने वर्ष 2003 के एक शासनादेश को स्पष्ट करते हुए कहा है कि दिव्यांग अधिकारियों व कर्मचारियों को नियमित तबादलों से छूट हासिल है। न्यायालय ने उक्त शासनादेश पर टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि सरकारी अथॉरिटी कोई नीति या दिशानिर्देश जारी करती है तो उसका पालन करने की मंशा होती है, न कि उसे अनदेखा करने की।
यह आदेश न्यायमूर्ति चन्द्रधारी सिंह की एकल सदस्यीय पीठ ने लक्ष्मीकांत मिश्रा की सेवा सम्बंधी याचिका पर पारित किया। याचीका कर्ता का कहना था कि उसका तबादला डिप्टी ट्रांसपोर्ट कमिश्नर, वाराणसी के पद पर 27 जून 2019 को किया गया था। इसके बाद 11 जून 2020 को ही उसे लखनऊ मुख्यालय में इसी पद पर भेज दिया गया।
वहीं राज्य सरकार की ओर से याचिका के विरोध में कहा गया कि यह सही है कि दिव्यांग व्यक्तियों को नियमित तबादलों से छूट है लेकिन उनके खिलाफ शिकायतें प्राप्त होने पर उनका तबादला किया जा सकता है। इस मामले में याचीका के खिलाफ वाराणसी में तैनाती के दौरान भ्रष्टाचार की शिकायतें आई थीं लिहाजा सक्षम प्राधिकारी से अनुमति के पश्चात उसका तबादला किया गया। हालांकि कोर्ट ने कहा कि याचीका कर्ता 50 प्रतिशत विकलांग है। 15 दिसंबर 2003 का उक्त शासनादेश ऐसे अधिकारी/कर्मचारी के लिए नरमी की निर्देश देता है। लिहाजा याचीका कर्ता उक्त शासनादेश के तहत सुरक्षा पाने का हकदार है। उक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने याचीका कर्ता के तबादला आदेश को निरस्त कर दिया।