बंगाल में ममता का किला तो बचा, लेकिन आंकड़ों के लिहाज से भाजपा की सफलता को नजरअंदाज नहीं कर सकते, जिसने तीन से 78 सीटों तक का शानदार सफर तय किया है। असम में भाजपा की सत्ता बरकरार रहना भी बड़ी सफलता है। बंगाल में भाजपा की बढ़त और असम की जीत में मध्य प्रदेश की भी अहम भूमिका है। मोदी कैबिनेट में शामिल नरेंद्र सिंह तोमर को असम के प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई थी। उनके साथ भाजपा के प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत ने भी बराबरी से भूमिका अदा की।
वहीं बंगाल में मप्र के दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय ने 2015 से कमान ली थी। उनके साथ मप्र के गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने प्रचार के दौरान कई रोड शो और रैलियां करके बढ़त की जमीन तैयार की। पूर्वोत्तर में सत्ता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण था। चूंकि तोमर के पास इससे पहले हरियाणा में भी बतौर प्रभारी सत्ता बरकरार रखने का अनुभव था, तो उन्होंने असम में भी चुनावी प्रबंधन के कौशल को साबित किया। दरअसल, तोमर भाजपा में उस पंक्ति के नेताओं में शुमार हैं, जिन्हें सांगठनिक कौशल में महारत है, जिसके बूते वे मप्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के दो कार्यकाल में पार्टी को सत्तारूढ़ करा चुके हैं।
वर्ष 2003 में जब उमा भारती के नेतृत्व में भाजपा मप्र में परिवर्तन यात्रा निकाल रही थी, उसके प्रभारी तोमर थे। उन्होंने पूरे प्रदेश में कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान की थी। बतौर राष्ट्रीय महामंत्री जब वे उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव थे, तब पहली बार भजापा ने 11 नगर निगम में जीत दर्ज की थी। इसके बाद विस चुनाव में सफलता नहीं मिली, लेकिन उत्तर प्रदेश में भाजपा मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी और पांच साल बाद पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
बंगाल में भाजपा लक्ष्य के मुताबिक भले ही सत्ता परिवर्तन नहीं कर सकी, लेकिन राज्य में भगवा जमीन मजबूत हो गई है। इसमें भी मप्र की अहम भूमिका है। मप्र के कद्दावर राजनेता कैलाश विजयवर्गीय को 2015 में पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाते हुए बंगाल का प्रभार दिया गया था। तब राज्य में न भाजपा का सांगठनिक ढांचा मजबूत था, न सदन में उल्लेखनीय मौजूदगी थी।
विजयवर्गीय ने संगठन की मजबूती के साथ भाजपा की रीति-नीति को इस तरह लोगों के बीच पहुंचाया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 18 लोकसभा सीटों पर कमल खिलने के साथ विधानसभा चुनाव में वह मजबूत विपक्ष बनकर उभरी है। जो संकेत देता है कि आने वाले दिन ममता सरकार के लिए सहज नहीं होंगे।