कृषि कानूनों के खिलाफ राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर मोर्चा संभाले हैं, 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद जहां टिकैत बंधु बैकफुट पर नजर आ रहे थे, वहीं एक हफ्ते बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। किसान आंदोलन नए रंग के साथ जोर पकड़ रहा है। भारी जनसमर्थन मिलने के बाद राकेश टिकैत एक बार फिर मजबूती के साथ उभरे हैं और इसका उदाहरण मंगलवार को गाजीपुर बॉर्डर पर देखने को मिला।
किसान आंदोलन को देखते हुए पुलिस ने गाजीपुर बॉर्डर पर भारी सुरक्षा-व्यवस्था की है और धारा 144 लगा रखी है। मंगलवार को इन्हीं बैरिकेड्स के नीचे सड़क पर बैठकर राकेश टिकैत ने खाना खाया। उनके समर्थकों में से एक ने कहा भी कि ऊपर पुलिस की चेतावनी लिखी है तो उन्होंने कहा इसीलिए तो यहीं बैठकर खा रहा हूं। सोशल मीडिया पर उनके इस अंदाज की काफी चर्चा हो रही है। लोग उनके इस अंदाज की तुलना उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत के अक्खड़ मिजाज से कर रहे हैं राकेश टिकैत के अंदाज को देखकर उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत से उनकी तुलना यूं ही नहीं हो रही। महेंद्र सिंह टिकैत का व्यक्तित्व इससे कहीं ज्यादा बड़ा था। महेंद्र सिंह टिकैत ने ही किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाया। उनके एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे। कहा जाता है कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं।
महेंद्र सिंह टिकैत के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाने के लिए साल 1988 के किसान आंदोलन का उदाहरण काफी है। महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में पूरे देश से करीब पांच लाख किसानों ने विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक कब्जा कर लिया था। अपनी मांगों को लेकर इस किसान पंचायत में करीब 14 राज्यों के किसान आए थे। सात दिनों तक चले इस किसान आंदोलन का इतना व्यापक प्रभाव रहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार दबाव में आ गई थी। आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को किसानों की सभी 35 मांगें माननी पड़ीं थीं, तब जाकर किसानों ने अपना धरना खत्म किया था।