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पॉक्सो एक्ट को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया. हाई कोर्ट ने नाबालिग के वक्ष दबाने वाले एक व्यक्ति पर से यौन दुराचार की धारा हटा दी थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि बिना कपड़े उतारे ऐसा आचरण सिर्फ गरिमा को ठेस पहुंचाने का मामला. एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सीजीआई की बेंच में यह मामला रखा. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाते हुए एटॉर्नी से लिखित याचिका दाखिल करने को कहा.

राष्ट्रीय महिला आयोग ने सोमवार को कहा कि वह बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी जिसमें कहा गया है कि त्वचा से त्वचा का संपर्क हुए बिना नाबालिग लड़की का स्तन स्पर्श करना यौन उत्पीड़न नहीं है. आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने ट्वीट कर कहा कि इस फैसले से न सिर्फ महिला सुरक्षा से जुड़े विभिन्न प्रावधानों पर विपरीत असर होगा, बल्कि सभी महिलाओं को उपहास का विषय बनाएगा. उनके मुताबिक, इस फैसले ने महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित कानूनी प्रावधानों को महत्वहीन बना दिया है.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके वक्षस्थल को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता. इस तरह का कृत्य पोक्सो अधिनियम के तहत यौन हमले के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता . बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए ”यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना” जरूरी है. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है.

न्यायमूर्ति गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले को बदला जिसने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई थी. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह दर्ज किया कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके वक्ष को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की. हाई कोर्ट ने कहा, चूंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह भादंसं की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है.

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