तीन महीने की कड़कड़ाती सर्दी से दो-दो हाथ कर सड़कों पर तंबू और डेरा जमाए किसानों के आंदोलन की लौ थमती दिखाई नहीं दे रही है. पहले कमान पंजाब के हाथ में थी तब उत्तर भारत किसान आंदोलन से छिटका सा खड़ा था लेकिन टिकैत के तेवर बदलते ही अब इस आंदोलन का केंद्र पंजाब से हटकर उत्तर प्रदेश हो गया है.
इस घटना को केवल आंदोलन के आईने से नहीं बल्कि सियासी नजरिए से भी देखने की जरूरत है. किसानी बचाने के लिए हो रही इस लड़ाई में अब वो तस्वीरे दिखाई दे रही हैं जो 2013 से पहले नजर आती थी. टिकैत ने जो आवाज लगाई उसके पीछे पश्चिमी यूपी के जाट और मुस्लिम लामबंद हो रहे है. राकेश टिकैत आंदोलन को आगे बढ़ा रहे है और नरेश टिकैत हर जिले में पहुंचकर महापंचायत के जरिए किसानों को उनके हक उनके सम्मान और उनकी रोजी रोटी के लिए इस आंदोलन की जरूरत समझाने में जुटे है. इन पंचायतों में हर वर्ग हर जाति के लोग हिस्सा ले रहे हैं. मुजफ्फर नगर दंगो के बाद कभी जाट और मुस्लिम एक साथ आने से बचते थे लेकिन, किसानों की लड़ाई ने दिलो की दूरी मिटा दी है. पश्चिमी यूपी की महापचायतों के बाद नरेश टिकैत ने अवध और पूर्वांचल में भी महापंचायत की है. लखनऊ से सटे बाराबंकी में तो पंचायत में खासा भीड़ भी उमड़ी और बस्ती की महापंचायत भी ठीक रही.