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सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ि‍ता से राखी बंधवाने की शर्त पर अभियुक्त को जमानत देने का मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का आदेश रद कर दिया है। अदालत ने कहा कि ऐसी शर्तें स्वीकार नहीं की जा सकती हैं। साथ ही शीर्ष अदालत ने महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा और दुष्कर्म के मामलों में जमानत देते वक्त अतार्कि‍क शर्तों और घिसीपिटी पुरुषवादी सोच दर्शाने वाली टिप्पणियों पर कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने कहा कि ऐसी सोच से बचते हुए जजों को केस की सुनवाई के दौरान न तो ऐसी कोई बात बोलनी चाहिए और न ही आदेश में लिखनी चाहिए, जिससे पीड़ि‍ता का अदालत की निष्पक्षता पर भरोसा कम हो। जमानत पर फैसला कानून के मुताबिक होना चाहिए।

उसमें पीड़ि‍ता के पूर्व आचरण, परिधान या व्यवहार आदि के बारे में कोई चर्चा नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जजों और वकीलों को जेंडर सेंसिटाइजेशन की ट्रेनिंग दिए जाने का आदेश देते हुए दुष्कर्म और यौन उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए हैं। जस्टिस एएम खानविलकर और एस रविंद्र भट की पीठ ने यौन उत्पीड़न के अभियुक्त को पीड़ि‍ता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत दिए जाने के मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।

शीर्ष अदालत ने फैसले की शुरुआत हेनरिक इब्सेन के कोट से की, जिसमें कहा गया कि वर्तमान में महिलाएं ऐसे समाज में हैं जो विशेषकर मर्दाना है, जहां पुरुषों द्वारा बनाए गए कानून और न्यायिक व्यवस्था है, जिसमें महिलाओं का आचरण पुरुषवादी नजरिये से आंका जाता है। कोर्ट ने कहा कि इब्सेन ने यह बात उन्नीसवीं शताब्दी में कही थी और दुख की बात है कि आज 21वीं शताब्दी में भी यह सत्य है।

कोर्ट ने कहा कि यह फैसला सिर्फ जमानत के एक आदेश के खिलाफ केस की मेरिट पर ही नहीं है, बल्कि न्यायिक आदेशों में दिखने वाले पुरुषवादी और महिला विरोधी आचरण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में है। कोर्ट ने देश और दुनिया में महिलाओं को लेकर पुरातन सोच और पुरुषवादी नजरिये के साथ महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध के आंकड़े भी फैसले में दर्ज किए हैं।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश की आलोचना करते हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि लगता है न्यायाधीश अपने दायरे से आगे निकल गए, यह महज ड्रामा है। इसकी निंदा होनी चाहिए। वेणुगोपाल ने कहा था कि जजों को जेंडर सेंस्टाइजेशन (महिलाओं के प्रति संवेदनशील) का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि जमानत की शर्तों के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी वेबसाइट्स पर अपलोड किया जाना चाहिए ताकि उन्हे पता रहे कि क्या किया जा सकता है और क्या नहीं। अटार्नी जनरल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला ज्युडिशियल एकेडेमी में पढ़ाया जाना चाहिए और उसे ट्रायल कोर्ट व हाईकोर्ट के समक्ष भी रखा जाना चाहिए ताकि जजों को पता रहे कि उन्हें क्या करना चाहिए।