किसान विरोधी/जनविरोधी तीनों विधेयकों को लोकसभा से पास मकसद है:-
1) मंडी/एम एस पी/ निम्नतम समर्थन मूल्य को तोड़ने, ताकि किसानों का पैदावार लूटा जा सके;
2) ठेका खेती लाने ताकि किसानों की जमीन कम्पनियों के पास जाने का रास्ता खुल जाए और
3) अनाज, तेलहन, दलहन और आलू, प्याज की जमाखोरी की सीमा खत्म करने, ताकि किसानों से औने पौने दाम पर खरीद कर, जमाखोरी के माध्यम से कीमत बढा़ कर आम उपभोक्ताओं को लूटा जा सके.
ये तीनों विधेयक कानून बन जाने पर देश के किसानों और कृषि क्षेत्र को तो बर्बाद करेगा हीं, खरीद कर खाने वाले आम उपभोक्ताओं को भी जमाखोरों के हवाले कर देगा. सरकार का इरादा मंडी/एम एस पी को तोड़ने के बाद सार्वजनिक वितरण प्रणाली/सस्ते राशन की दूकानों को तोड़ना है. क्योंकि सरकार किसानों से मंडियों में खरीदेगी हीं नहीं तो राशन की दुकानों में अनाज आएगा कहाँ से?
इस कोरोनाकाल और मनमाना लौकडाउन के कारण जब सारे आर्थिक क्षेत्र अस्तव्यस्त होकर घाटे में चले गए, जीडीपी लगभग 24% तक नीचे चला गया, ऐसी स्थिति में यह अन्नदाता और कृषि क्षेत्र हीं था जिसने सरकार की तमाम अराजक कार्रवाईयों के बाबजूद आमलोगों के लिए भोजन की उपलब्धता बनाए रखा, जिसके बल पर प्रधानमंत्री पांच किलो अनाज और एक किलो चना देने का एलान कर अपनी पीठ ठोकते रहे!
आपदा को अवसर में बदलने का नारा देकर, देश के तमाम संसाधन को, रेल, तेल, भेल, गैस आदि को, कारपोरेट्स के हवाले करने का, और मनमाना छंटनी का जो जनविरोधी, राष्ट्र विरोधी काम लगातार मोदी सरकार किए जा रही है, उसने अब किसानों और कृषि क्षेत्र को निशाना बनाया है! विरोध के किसी भी कारर्वाई को पुलिस दमन से , तानाशाही तरीके से दबाने की कोशिश हो रही है. जन नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है.
लेकिन अश्वमेध का घोड़ा, जिसको आज कारपोरेट्स के दलाल सरकार ने निजीकरण के घोड़े में बदल दिया है, उसे अब रोकना हीं होगा, अन्यथा हमारी खाद्य सुरक्षा, हमारा कृषि क्षेत्र, हमारे किसान, हमारे उपभोक्ता और हमारा पूरा अर्थतंत्र कारपोरेट्स और उनके सहयोगी विदेशी कंपनियों के हवाले चला जाएगा.