BHARAT VRITANT

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री Lal Bahadur Shastri का निधन 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में हुआ। ताशकंद समझौते के बाद उनकी खुशी ज्यादा नहीं थी। अगले ही दिन उनका शव होटल के कमरे में मिला। उनकी मृत्यु आज भी एक गहरा रहस्य बनी हुई है।

ताशकंद समझौते के बाद निराशा

1965 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा किया था। युद्ध समाप्ति के लिए ताशकंद में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ, जिसमें भारत ने हाजीपीर और ठिठवाल के इलाके वापस करने की सहमति दी। शास्त्री जी ने अपनी बेटी से कहा था कि वह इस समझौते से खुश नहीं हैं।

देशवासियों से की थी उपवास की अपील

प्रधानमंत्री के रूप में, Lal Bahadur Shastri जी ने अनाज संकट के दौरान देशवासियों से एक समय का भोजन छोड़ने की अपील की। उनकी अपील पर देश ने अमल किया। उनके नेतृत्व में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में हराया और खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाए।

ईमानदारी की मिसाल: बेटे का प्रमोशन रोका

Lal Bahadur Shastri जी ने अपने ही बेटे को अनुचित तरीके से दिया गया प्रमोशन रुकवा दिया था। उन्होंने संबंधित अधिकारी को फटकार लगाते हुए प्रमोशन वापस लेने का आदेश दिया।

वीआईपी कल्चर का विरोध

सादगी पसंद शास्त्री जी ने गृहमंत्री रहते समय ट्रैफिक में फंसने पर सायरन वाली गाड़ी का इस्तेमाल करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ऐसा करना आम जनता को परेशानी में डालने जैसा होगा।

नौ बार जेल गए, ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया

Lal Bahadur Shastri जी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नौ बार जेल गए। प्रधानमंत्री रहते उन्होंने ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया, जिसने मुश्किल समय में देश को नई प्रेरणा दी।

निष्कलंक छवि और मजबूत नेतृत्व

Lal Bahadur Shastri जी का कार्यकाल छोटा था, लेकिन उन्होंने अपनी ईमानदारी और सादगी से देश में अमिट छाप छोड़ी। उनकी नीतियों और जीवन के किस्से आज भी प्रेरणा देते हैं।